लोभी साधु – Short Story In Hindi
लोभ करना अच्छा नहीं है, क्योकि लोभ करने से हमारी प्रतिष्ठा चली जाती है। इस कहानी (लोभी साधु – Short Story In Hindi) में भी एक साधु अपने लोभ की वजह से ही अपनी प्रतिष्ठा और अपना मान – सम्मान खो देते है। इसलिए हमें लोभ से बचकर रहना चाहिए।
एक दिन एक ग्वाला अपनी गाय को तालाब पर नहला रहा था। तभी उसने देखा की पेड़ की ओट मे से एक साधु ने कुछ अशर्फिया गिनकर अपने बटुए मे रख ली है और उन्हें अपने जटाजूट में छिपा दिया।
यह देख कर ग्वाले ने एक योजना बनाई। उसने साधु के पास जाकर उन्हें प्रणाम कर के कहा – बाबा! आज शाम आप मेरे घर पर पधारिये। अब तब मुझे कोई सच्चा गुरु नहीं मिला। कृपा कर मुझे और मेरी पत्नी को अपना शिष्य बनाकर हमारा जीवन धन्य कर दीजिये।
साधु का लोभ जाग्रत हुआ। वह बोले, बच्चा! यदि तू मुझे दक्षिणा मे दो अशर्फियाँ देगा तो मै तुम दोनों को शिष्य बनाऊंगा। ग्वाला मान गया।
शाम को साधु ग्वाले के घर पर आये। ग्वाले और ग्वालिन ने प्रेमपूर्वक साधु को बिठाया और फिर व्यंजनों से भरी हुई थाली परोसी। भोजन के बाद साधु ने विश्राम किया।
जब साधु के जाने का समय हुआ तो उसने दक्षिणा मांगी। ग्वाले ने अपनी पत्नी को संदूक की चाबी देकर कहा की संदूक में अशर्फिया रखी है। उनमे से दो गुरूजी को दे दो।
ग्वालिन को संदूक में अशर्फिया नहीं मिली। जब उसने ग्वाले से यह बात कही तो वह चिढ़कर बोला – मैंने अपने हाथो से अशर्फिया संदूक में रखी थी। जरूर तूने ही उसे छिपाया है। मै तेरी तलाशी लूंगा।
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ग्वालिन ने तलाशी दे दी लेकिन अशर्फिया नहीं मिली। तब ग्वाल ने खुद की तलाशी भी ग्वालिन से लेने को कहा। अशर्फिया तब भी नहीं मिली। फिर ग्वाले ने साधु को ग्वालिन के शंकालु स्वभाव का हवाला देकर उनकी भी तलाशी देने को कहा।
बाबा के जटाजूट में से अशर्फिया निकलने पर ग्वाला बोला – देख भगवान्! साधु महाराज ने अपने तप से हमारी अशर्फिया वापस ला दी। अब इनमे से दो उन्हें अर्पित कर शेष संदूक में रख लो। ग्वालिन ने यही किया। लोभी साधु देखता ही रह गया।
लोभ करने से प्रतिष्ठा चली जाती है इसलिए लोभ से बचना चाहिए।
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