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जीने का सही तरीका – Short Story In Hindi

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Written by Abhishri vithalani

जीने का सही तरीका – Short Story In Hindi

जीवन जीने का असली तरीका कौन सा है? क्या आपको पता है? अगर नहीं तो ये कहानी (जीने का सही तरीका – Short Story In Hindi) आपके लिए ही है। जीने का सही तरीका है की हम अतीत को याद ना करे, भविष्य के सपने ना देखे और कभी किसी भी तरह की चिंता ना करे। इस कहानी में जीवन जीने का यही असली तरीका बताया गया है।

मगध सम्राट राजा श्रेणिक का पुत्र कणिक अक्सर परेशान और बेचैन रहता था। उसकी बेचैनी की वजह यह थी कि कभी उसे गुजरे हुए कल कि चिंता सताती तो कभी उसे आने वाले कल का डर परेशान करता।

इस वजह से उसका खाने – पीने में भी मन नहीं लगता था। राजा श्रेणिक उसके इस हाल को लेकर बहुत चिंतिति रहा करते थे। एक दिन उन्होंने कणिक को समझाने के लिए अपने महल में बुलाया।

कणिक आया तो राजा बोले, कुंडपुर पास ही है। तुम वहा जाओ और वहा के राजा सिद्धार्थ के पुत्र राजकुमार वर्धमान से मुलाकात करो। हो सकता है की तुम्हारा मन बहल जाए और चिंता भी कुछ कम हो जाए।

कणिक ने उनकी बात मान ली। वह कुंडपुर जाकर राजा सिद्धार्थ के महल नंद्यावर्त में राजकुमार वर्धमान से मिला। उसने उनके चेहरे की अद्भुत शांति और क्रांति देखि तो वह दंग रह गया।

वर्धमान कणिक की मौसी का पुत्र था। कणिक बोला, मै इतना परेशान और चिंतिति हु कि कह नहीं सकता। आपको देखकर तो मै कल्पना भी नहीं कर सकता कि मनुष्य के चेहरे पर इतनी क्रांति और शांति हो सकती है। आपका चेहरा देखकर तो मुझे भी शांति का अनुभव हो रहा है। इसका क्या कारण है?

वर्धमान ने मंद – मंद मुस्कराते हुए बोलना शुरू किया कि मै अतीत को याद नहीं करता, भविष्य के सपने नहीं देखता और कभी किसी भी तरह की चिंता नहीं करता। मै केवल वर्तमान में जीता हू, इसलिए सदैव स्वस्थ और शांत रहता हू।

मेरे चेहरे पर सदैव क्रांति अठखेलिया करती रहती है। कणिक को वर्धमान की बातो से प्रेरणा मिली और वह भी पूरी तरह उत्साह से भर गया। वह ख़ुशी – ख़ुशी मगध लौट आया और उसके बाद शांतिमय जीवन जीने लगा। वही वर्धमान आगे चलकर त्याग और तपस्या का जीवन जीते हुए जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर बने।

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Abhishri vithalani

I am a Hindi Blogger. I like to write stories in Hindi. I hope you will learn something by reading my blog, and your attitude toward living will also change.

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