दान की पराकाष्ठा – Short Inspiring Story In Hindi
हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे होते है की जो दान दिखाने के लिए देते है ना की किसी का अच्छा सोच के। दान हमेशा किसी अच्छे काम के हेतु से देना चाहिए ना की दुसरो को अपनी अमीरी दिखाने के लिए। पर आज ज़माने में तो कुछ लोग दान भी दिखावे के हेतु से करते है और उसके Pictures भी सोशल मीडिया में अपलोड करते है जो की बिलकुल गलत है। इस कहानी (दान की पराकाष्ठा – Short Inspiring Story In Hindi) में उसी के बारे में बात की गयी है।
नगर में एक विशाल मंदिर का निर्माण होना था। जोर – शोर से चंदा इकट्ठा किया जाने लगा। सबसे अधिक धन देने वाले का नाम दानपट्टिका में सबसे ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा जाना था।
इसके लिए नगर में प्रतिष्ठित लोग लाला भगवान् राय के द्वार पर पहुंचे और अधिकाधिक चंदा देने के लिए उकसाने का प्रयास करने लगे।
इसमें बुराई भी कुछ नहीं थी। नेक काम के लिया चंदा माँगा जा रहा था और लाला भगवान् राय भी इसमें समर्थ थे। नगर में लाला भगवान् राय के आलावा ऐसा कोई व्यक्ति बचा भी नहीं था जो उनसे ज्यादा चंदा देने का सामर्थ्य रखता हो, इसलिए लोग जान – बूझकर सबसे बाद में उनके पास पहुंचते है।
एक सज्जन की अब तक की सबसे ज्यादा दान की राशि की जो रसीद कटी थी, उसकी काउंटर – फॉइल लालजी को दिखाने लगे। लालजी ने पूछा की भाई, मुझसे क्या सेवा चाहते हो?
आगंतुकों में से एक ने कहा की इन्होने ग्यारह लाख रूपये दिए है अत: आप कम से कम बारह लाख रूपये अवश्य दे जिससे दानपट्टिका में आपका नाम सबसे ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा जा सके।
लालजी ने कहा की मेरा नाम सबसे ऊपर लिखने की जरुरत नहीं है। आप जो कहेंगे वो सेवा मै करने के लिए तैयार हु पर एक शर्त पर और वो शर्त ये है की दानपट्टिका में सबसे ऊपर बड़े अक्षरों में नाम इन्ही सज्जन का लिखा जाए जिन्होंने अब तक की सबसे ज्यादा रकम ग्यारह लाख रूपये दी है।
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इसके फ़ौरन बाद लालजी ने बीस लाख रूपये उन्हें थमाते हुए कहा की लो, दो रसीदें काट दो, एक रसीद दस लाख की मेरे नाम से और दूसरी दस लाख की मेरी सहधर्मिणी के नाम से।
दानपट्टिका पर सबसे ऊपर बड़े अक्षरों में नाम लिखवाने के उद्देश्य से दिया गया दान वास्तव में यश की कामना से दिया गया दान है जो सकाम कर्म की श्रेणी में आता है।
दान हमेशा यश की कामना से ऊपर उठकर देना ही श्रेयस्कर है। यह अलग बात है की निष्काम भाव से प्रदत सात्विक दान से जो प्राप्ति होती है उसका आकलन संभव नहीं। जिसने देने की इस कला को सीख लिया उसे भला किस चीज़ की कमी और यश से उसे क्या प्रयोजन?
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