गुरु से बड़ा कोई नहीं – Short Story In Hindi
किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है, लेकिन मै ही सब कुछ हू, मुझे किसी के सहयोग कि आवश्कयता नहीं है, ये अहंकार है और यही से विनाश का बीजारोपण हो जाता है। इसलिए हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए। ये कहानी (गुरु से बड़ा कोई नहीं – Short Story In Hindi) उसी के बारे में है।
एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पाँव बढ़ रहा है।
वह डर के मारे इधर – उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर चली गयी। तब उसने देखा कि ये तालाब तो ज्यादा गहरा नहीं है। उसमे पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था।
उन दोनों के बीच कि दूरी काफी कम थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड़ के अंदर धीरे – धीरे घंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे – धीरे कीचड़ के अंदर घंसने लगा।
दोनों ही करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फंस गए। वो दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।
थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है? बाघ ने गुस्से में कहा, मै तो जंगल का राजा हु। मेरा कोई मालिक नहीं है। मै खुद ही जंगल का मालिक हु। गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारी उस शक्ति का यहाँ पर क्या उपयोग है?
उस बाघ ने गाय से कहा कि तुम भी तो यहाँ पर फंस गयी हो और तुम भी तो मेरी तरह मरने के एकदम करीब हो। तुम्हारी भी हालत मेरे जैसी ही है। गाय ने मुस्कुराते हुए कहा, बिलकुल नहीं। मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहा पर नहीं देखेगा तो वह मुझे ढूढ़ते हुए यहाँ जरूर आएगा।
गाय ने आगे कहा कि मेरा मालिक मुझे इस कीचड़ में से निकाल कर अपने घर ले जायेगा। तुम्हे कौन ले जायेगा?
थोड़ी ही देर में सच में एक आदमी वहा पर आया और गाय को कीचड़ में से निकालकर अपने घर ले गया। जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे कि तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे। वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ में से नहीं निकाल सकते थे क्योकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।
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गाय – समर्पित ह्रदय का प्रतिक है।
बाघ – अहंकारी मन है।
मालिक – ईश्वर का प्रतिक है।
कीचड़ – यह संसार है। और
संघर्ष – अस्तित्व कि लड़ाई है।
किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है, लेकिन मै ही सब कुछ हू, मुझे किसी के सहयोग कि आवश्कयता नहीं है, यही अहंकार है और यही से विनाश का बीजारोपण हो जाता है।
ईश्वर के बाद इस दुनिया में सच्चा हितैषी कोई नहीं होता, क्योकि वही अनेक रूपों में हमारी रक्षा करता है।
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