Moral Short Stories

डाकू और उसके पिता – Short Moral Story In Hindi

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Written by Abhishri vithalani

डाकू और उसके पिता – Short Moral Story In Hindi

हमारे जीवन की नींव हमारे बचपन के सुसंस्कारों में होती है, संस्कार जो की हमें अपने माता – पिता से मिलते है। यदि कोई अपने बच्चो का पालन सच्चे और उचित मूल्यों के साथ करता है तो बड़े होने के बाद उनका बच्चा नैतिक मानव बन सकता है। दूसरी तरफ अगर बच्चो का पालन कुसंस्कारों से भरपूर नकारात्मक दिशा में किया जाये तो वो बच्चे बड़े होकर दुष्ट मानव बनते है। ये कहानी (डाकू और उसके पिता – Short Moral Story In Hindi) उसी के बारे में है।

सिंधुराज राज्य में एक डाकू रहता था, जिसका आतंक सबके दिलों में बस गया था। वह धनी-गरीब, बड़े-छोटे सबको अपनी लूट से परेशान करता था। उसका दया और दयालुता से कोई लेना देना नहीं ही था। लोग उसके सामने हाथ जोड़कर गुहार लगाते, पर उसके दिल को यह बात कभी प्रभावित नहीं करती थी।

उसने अनगिनत निर्दोष लोगों की हत्या की थी, क्योंकि उनमें से कोई भी उसके आगे आवाज उठाता, उसके खिलाफ बोलता, तो वह उसे नष्ट कर देता था।

सिंधुराज के राजा ने तय किया कि उस डाकू का खत्म करना ही उनकी प्राथमिकता है। राजा ने अपनी सेना को उस डाकू को पकड़ने के लिए एक आदेश दिया।

संघर्ष में आखिरकार, सिंधुराज की सेना ने उस डाकू को गिरफ्तार कर लिया। डाकू को उसकी अनैतिक क्रियाओं का परिणाम भुगतना पड़ा, और राजा ने उसे मौत की सजा सुनाई।

जब डाकू का पिता उसके पास आया और मिलने के लिए बिना रुके उसके पास पहुँचा, तो डाकू ने उससे मिलने से इंकार कर दिया।

इस पर सवाल किया गया, तो डाकू ने बताया, “बचपन में मैंने पहली बार एक स्वर्ण मुद्रा की चोरी की थी। जब मैंने वह स्वर्ण मुद्रा पिता को देने का निर्णय किया, तो उन्होंने मेरी प्रशंसा की और मेरी पीठ थपथपाई। अगर वह दिन मेरे लिए और भी खराब होता, तो शायद मैं आज यहाँ न होता।”

आखिर में उस डाकू को अपने किये पर अफ़सोस हो रहा था लेकिन अब अफ़सोस करने का कोई मतलब ही नहीं था। उसे बार – बार वही याद आ रहा था की जब मेने बचपन में पहली बार गलती की थी तब मेरे पिता ने मुझे को नहीं रोका था।

बचपन में दिए गए संस्कारो का हमारे पुरे जीवन में बहुत महत्व होता है और उसी संस्कारो के साथ हमारे आगे के जीवन की नींव तैयार होती है।

Moral : इस कहानी से हमें एक महत्वपूर्ण सिख मिलती है कि हमारे जीवन की नींव हमारे बचपन के सुसंस्कारों में होती है। वह समय हमारी व्यक्तिगतता और नैतिकता का आधार रखता है। बच्चों को सच्चे और उचित मूल्यों के साथ पालने से ही वे जीवन में अच्छे और सदैव नैतिक मानव बन सकते हैं। दूसरी ओर, कुसंस्कारों से भरपूर जीवन उन्हें नकारात्मक दिशा में ले जा सकता है।

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Abhishri vithalani

I am a Hindi Blogger. I like to write stories in Hindi. I hope you will learn something by reading my blog, and your attitude toward living will also change.

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