सच बोलना सीखो – Short Story In Hindi
एक व्यक्ति के सच बोलने से कई व्यक्तियों का लाभ होता है। सच्चाई कैसी भी हो, उसका साथ देने से कभी नुकसान नहीं होता है। इस कहानी (सच बोलना सीखो – Short Story In Hindi) में यही बताया गया है।
एक राजा दरबार में न्याय कर रहा था। उसके सामने दो फरियादी खड़े थे जो न्याय मांगने दरबार में आए थे। राजा ने उन्हें अपना अपना पक्ष रखने के लिए कहा।
दोनों ने बारी – बारी से अपना पक्ष रखा। जब पहले व्यक्ति ने अपना पक्ष रखा था तब राजा अपने छोटे से बच्चे के साथ खेलने में व्यस्त थे। तभी उनका ध्यान कम था, लेकिन जब दूसरे व्यक्ति ने अपना पक्ष रखा तो राजा ने उसकी पूरी बात ध्यान से सुनी और इसी वजह से राजा ने अपना फैसला दूसरे फरियादी के हक़ में सुनाया।
राजा का फैसला सुनने के बाद सभी दरबारी स्तब्ध रह गए क्योकि सभी को पहला व्यक्ति निर्दोष लग रहा था। लेकिन राजा के सामने सच बोलने की हिम्मत किसी की भी नहीं हो रही थी।
इस बात को दो दिन बीत गए। तीसरे दिन उस व्यक्ति का बेटा दरबार में पहुंचा और राजा से न्याय मांगने लगा। उसने कहा – महाराज! एक राज्य है, जहा मेरे पिता अपनी फ़रियाद लेकर गए थे और उन्होंने अपना पक्ष अच्छे तरीके से रखा लेकिन राजा उनकी बात सुनते वक्त सो गया और जब वह उठा तो राजा ने दूसरे व्यकित की बात पूरी सुनी और उसी के हक़ में फैसला सुना दिया।
हे राजन! अब आप ही मुझे बताइये की क्या यह फैसला सही है? तब राजा ने कहा, ये तो बिलकुल गलत बात है, तुम्हारे पिता जी से साथ बहुत बुरा हुआ। ऐसे वक्त में दरबारी और फरियादी दोनों को राजा को सच्चाई से अवगत कराना चाहिए।
फरियादी का बिना बात के दंड सहना पाप है और दरबारी भी न्याय का हिस्सा है। राजा कोई भगवान नहीं है, उनसे भी गलती हो सकती है। ऐसे में दरबारी को अपना द्रष्टिकोण देने का पूरा हक़ है।
किसी भी न्याय पर पुरे राज्य की प्रतिष्ठा निर्भर करती है। राजा की बात खतम होने पर फरियादी के बेटे ने कहा, हे राजन! वह राजा आप है। आपने ही मेरे पिता को सजा दी है, जब वे अपना पक्ष आपके सामने रख रहे थे तब आप अपने पुत्र के साथ खेलने में व्यस्त थे और इस कारण आपने पूरी बात नहीं सुनी।
आपके सामने बोलने की हिम्मत किसी की न थी, जिसके परिणामस्वरूप पिछले 2 दिन से मेरे पिता सजा भोग रहे है। राजा ने यह बात सुनकर अपना न्याय बदला और दरबारियों को फटकारा।
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इसके साथ ही राजा ने सत्य बोलने वाले उस फरियादी के पुत्र का अभिवादन किया और उसे पुरस्कार स्वरूप राज्य के कार्यशाला में पद दिया। सच्चाई कैसी भी हो, उसका साथ देने से कभी नुकसान नहीं होता है।
अगर दरबारी की तरह फरियादी का पुत्र भी चुप रहता तो उसके पिता को तो सजा भोगनी पड़ती ही, साथ ही जो सबक राजा और दरबारी को मिला वो भी नहीं मिलता।
एक व्यक्ति के सच बोलने से कई व्यक्तियों का लाभ होता है। जिस तरह से राजा ने सत्य को स्वीकार कर अपनी भूल को ठीक किया, उसी तरह सभी को अपनी गलती स्वीकारने में शर्म नहीं करनी चाहिए अपितु उसे स्वीकार कर उसे ठीक कर, उससे सिख लेनी चाहिए।
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