बाज़ का कठिन संघर्ष – Moral Story In Hindi
बाज़ को सभी पक्षियों का राजा कहा जाता है। उसकी दृष्टि बेहद तेज होती है और उसकी उड़ान इतनी ऊँची कि वह सीधे आकाश को छू ले। यह पक्षी अपनी ताक़त, साहस और अदम्य इच्छाशक्ति के कारण हमेशा से मनुष्य के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है।
बाज़ की औसत उम्र लगभग 70 वर्ष तक होती है, लेकिन उसके जीवन में एक ऐसा मोड़ आता है जब वह अपनी आधी उम्र पूरी करने के बाद कठिन परीक्षा से गुजरता है। यह परीक्षा इतनी कठोर होती है कि यदि वह साहस न करे तो उसका जीवन वहीं समाप्त हो सकता है।
जब बाज़ लगभग 40 वर्ष का होता है, तो उसका शरीर धीरे-धीरे साथ छोड़ने लगता है। उसके पंख इतने कमजोर हो जाते हैं की उड़ान असंभव हो जाती है। उसके नाखून भी कमजोर हो जाते हैं, जिससे वह शिकार पर झपट्टा मारने और उसे पकड़ने में असमर्थ हो जाता है। उसकी मजबूत और धारदार चोंच भी अब धीरे-धीरे झुकने लगती है और इतनी कमजोर हो जाती है कि वह शिकार को मुँह में दबा नहीं पाता।
सोचिए, जिस पक्षी को उड़ने के लिए जाना जाता है, जिसकी पहचान ही उसका शिकार करने का तरीका है, वही जब उड़ान और शिकार करने की ताक़त खो दे, तो उसके जीवन की स्थिति कितनी कठिन हो जाती होगी।
उस समय बाज़ के पास केवल दो रास्ते होते हैं। पहला रास्ता यह कि वह खुद को बूढ़ा मान ले और धीरे-धीरे मौत का इंतज़ार करे। दूसरा रास्ता यह कि वह अपने शरीर को फिर से गढ़े, खुद को तोड़े और दर्दनाक संघर्ष के बाद नया जीवन बनाए।
बाज़ मौत का इंतज़ार नहीं करता। वह दूसरा विकल्प चुनता है। यही उसकी सबसे बड़ी ताक़त है और यही उसे दूसरों से अलग बनाती है। बाज़ ऊँची पहाड़ी की चोटी पर जाता है, जहाँ वह बिल्कुल अकेला हो। वहाँ वह अपने जीवन की सबसे कठिन तपस्या की शुरुआत करता है।
सबसे पहले वह अपनी कमजोर और झुकी हुई चोंच को कठोर पत्थरों पर मार-मारकर तोड़ देता है। यह प्रक्रिया असहनीय पीड़ा से भरी होती है, उसका चेहरा लहूलुहान हो जाता है, लेकिन वह जानता है कि जब तक पुरानी चोंच नहीं टूटेगी, तब तक नई और मजबूत चोंच नहीं उगेगी। धीरे-धीरे जब नई चोंच आती है तो वह अपने टेढ़े-मेढ़े नाखूनों को भी उसी से तोड़ डालता है।
नाखूनों को तोड़ना भी उतना ही पीड़ादायक होता है। उसकी पकड़ कमज़ोर हो चुकी होती है, खून निकलता है और शरीर दर्द से कराह उठता है, पर वह हार नहीं मानता। कुदरत उस साहस का प्रतिफल देती है और कुछ समय बाद उसे नई चोंच और नए नाखून मिलते हैं।
लेकिन संघर्ष यहाँ समाप्त नहीं होता। अब बारी आती है उसके भारी और बेकार हो चुके पंखों की। अपनी नई चोंच और नाखूनों से बाज़ अपने ही पंखों को नोच-नोचकर शरीर से अलग कर देता है।
पंख निकालते समय उसका पूरा शरीर खून से भर जाता है, दर्द इतना होता है कि कोई भी साधारण जीव अपना प्राण त्याग दे, लेकिन बाज़ अपनी जिजीविषा और स्वाभिमान के लिए उस दर्द को सहता है।
यह पूरी प्रक्रिया लगभग छह महीने तक चलती है। इन छह महीनों में बाज़ न उड़ पाता है, न शिकार कर पाता है। वह भूख-प्यास और अकेलेपन के बीच छटपटाता है, लेकिन उसके भीतर का विश्वास उसे टूटने नहीं देता। उसे यकीन होता है कि यह पीड़ा अस्थायी है और यही पीड़ा भविष्य में उसकी सबसे बड़ी ताक़त बनेगी।
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अंततः उसकी तपस्या रंग लाती है। कुदरत उसे नई चोंच, नए नाखून और नए पंख देती है। अब वह फिर से आकाश का राजा बनकर ऊँची उड़ान भर सकता है। वह अगले तीस साल और अधिक ताक़त और शान के साथ जीता है। उसका यह नया जीवन पहले से कहीं ज्यादा मजबूत और प्रेरणादायक होता है।
बाज़ की यह कहानी हमें गहरी सीख देती है। जीवन में जब भी कठिनाइयाँ आएँ, जब हमें लगे कि हम बिल्कुल असहाय हो गए हैं, तब दो ही विकल्प हमारे पास होते हैं। पहला यह कि हम हालात के सामने हार मान लें और धीरे-धीरे बिखर जाएँ। और दूसरा यह कि हम उस दर्द को स्वीकार करें, अपने पुराने और बेकार हिस्सों को तोड़ दें और साहस करके नई शुरुआत करें।
कठिन समय हमें तोड़ने के लिए नहीं आता। वह हमें हमारी असली ताक़त दिखाने और हमें और मजबूत बनाने आता है। अगर आप कुछ समय का दर्द सहकर संघर्ष कर लेंगे, तो वही संघर्ष आपकी सबसे बड़ी ताक़त बन जाएगा। याद रखिए, नई उड़ान के लिए पुराने पंखों का टूटना ज़रूरी है।
Moral: मुश्किल समय अस्थायी होता है, लेकिन वही हमें नई ताक़त देता है। पुराने बोझ छोड़कर ही नई शुरुआत संभव है, और यही बदलाव हमें नया जीवन देता है।
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