Panchtantra

शेरनी का तीसरा पुत्र – Panchtantra Story In Hindi

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Written by Abhishri vithalani

शेरनी का तीसरा पुत्र – Panchtantra Story In Hindi

कायर और डरपोक वंशज के लोग अगर बहादुर लोगों के बीच भी रहें, तो भी वह बहादुर नहीं बन सकते हैं। उनकी आदतों में उनकी वंशज की सोच और दक्षता की झलक बनी रह सकती है। इस कहानी (शेरनी का तीसरा पुत्र – Panchtantra Story In Hindi) में यही बताया गया है।

एक घने जंगल में रहने वाले शेर और शेरनी थे। ये दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे और हर दिन एक साथ शिकार करने जाते थे। उनके बीच में अच्छा विश्वास और गहरा बंधन था।

कुछ सालों बाद, शेरनी ने दो सुंदर बच्चों को जन्म दिया, और वे एक खुशियों भरे परिवार का हिस्सा बन गए। एक दिन शेर ने शेरनी से एक गंभीर बात की।

शेर ने कहा मैं जानता हूँ कि तुम्हें शिकार करना पसंद है, लेकिन अब मैं तुम्हें शिकार के लिए भेज नहीं सकता। इसके बजाय, तुम्हें अपने बच्चों की देखभाल करनी होगी।

अब शेरनी घर पर रहकर अपने बच्चों की देखभाल करती थी , जबकि शेर अकेले ही जंगल में शिकार करने जाता था।

कुछ समय बाद, एक दिन शेर को शिकार करते वक्त कोई भी पकड़ नहीं मिला। उसने पुरे दिन कोशिश की, लेकिन बिना किसी शिकार के वह थक कर वापस घर की ओर बढ़ने लगा।

वापस आते समय, रास्ते में उसने एक छोटे से लोमड़ी के बच्चे को देखा, जो अकेले घूम रहा था। शेर ने सोचा कि आज उसके पास शिकार के लिए कुछ होना चाहिए, इसलिए वह इस छोटे से लोमड़ी के बच्चे को ही अपना शिकार बना लेगा। वह तेजी से उसकी ओर बढ़ा और उसे पकड़ लिया।

जब शेर घर लौटा, तो उसने अपनी पत्नी को बताया कि आज उसे कोई भी शिकार नहीं मिला, लेकिन रास्ते में उसने एक छोटे से लोमड़ी के बच्चे को पकड़ा था, जिसे वह ले कर आया है। शेर ने ये भी बताया की ये लोमड़ी का बच्चा बहुत छोटा है इसलिए मुझे इसे मारने का मन नहीं हुआ।

इस पर शेरनी ने कहा, “तुमने सही किया, शेर। यह दयालुता और निर्मलता तुम्हारे अच्छे गुण हैं। अब हमें उस छोटे बच्चे को अपने बच्चों की तरह पालना होगा।”

इसके बाद, शेरनी और शेर ने उस छोटे लोमड़ी के बच्चे को अपने बच्चों की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया। वह बच्चा अब उनके तीसरे पुत्र के रूप में उनके साथ रहता था और उनके साथ खेलता, खूबसूरत यादें बनाता, और खुश रहता था।

जब वह तीनों बच्चे बड़े हो गए, तो एक दिन उन्होंने जंगल में हाथी को देखा। शेर के दो पुत्र हाथी के पीछे शिकार करने लगे, लेकिन उनका छोटा भाई डरकर वापस घर लौट आया।

कुछ देर बाद जब शेरनी के दोनों बच्चे भी वापस आए, तो उन्होंने जंगल वाली बात अपनी मां को बताई। उन्होंने बताया कि वह हाथी के पीछे गए, लेकिन उनका तीसरा भाई डर के मारे घर वापस आ गया। इसे सुनकर लोमड़ी का बच्चा गुस्सा हो गया। उसने गुस्से में कहा कि तुम दोनों जो खुद को बहादुर बता रहे हो, मैं तुम दोनों को पटकर जमीन पर गिरा सकता हूं।

लोमड़ी के बच्चे की बात सुनकर शेरनी ने उसे समझाया कि उसे अपने भाईयों से इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए। उसके भाई झूठ नहीं बोल रहे, बल्कि वे दोनों सच ही बता रहे हैं।

शेरनी की बात भी लोमड़ी के बच्चे को अच्छी नहीं लगी। गुस्से में उसने कहा, तो क्या आपको भी लगता है कि मैं डरपोक हूं और हाथी से डरकर में वापिस घर आ गया हु?

लोमड़ी के बच्चे की इस बात को सुनकर शेरनी उसे अकेले में ले गई और उसे उसके लोमड़ी होने का सच बताया। हमनें तुम्हें भी अपने दोनों बच्चों की तरह ही बड़ा किया है, उन्हीं के साथ तुम्हारी भी परवरिश की है, लेकिन तुम लोमड़ी वंश के हो और अपने वंश के कारण ही तुम हाथी जैसे बड़े जानवर को देखकर डर गए और घर वापस भाग आए। वहीं, तुम्हारे दोनों भाई शेर के वंश के हैं, जिस वजह से वह हाथी का शिकार करने के लिए उसके पीछे भाग गए।

शेरनी ने आगे कहा कि अभी तक तुम्हारे दोनों भाईयों को तुम्हारे लोमड़ी होने का पता नहीं है। जिस दिन उन्हें यह पता चलेगा वह तुम्हारा भी शिकार कर सकते हैं। इसलिए, अच्छा होगा कि तुम यहां से जल्द ही भाग जाओ और अपनी जान बचा लो।

शेरनी से अपने बारे में सच सुनकर लोमड़ी का बच्चा डर गया, और मौका मिलते ही वह रात में वहां से छिपकर भाग गया।

Moral : कायर और डरपोक वंशज के लोग अगर बहादुर लोगों के बीच भी रहें, तो भी वह बहादुर नहीं बन सकते हैं। उनकी आदतों में उनकी वंशज की सोच और दक्षता की झलक बनी रह सकती है।

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Abhishri vithalani

I am a Hindi Blogger. I like to write stories in Hindi. I hope you will learn something by reading my blog, and your attitude toward living will also change.

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