अंदर की आवाज – Hindi Story For Children With Moral
जब भी हम कोई गलत काम करते है तब हमारे अंदर की आवाज हमें ऐसा करने से रोकती है । ये कहानी ( अंदर की आवाज – Hindi Story For Children With Moral ) उसी के बारे में है ।
शाम का वक्त था , सोसाइटी के पार्क में बच्चे खेल रहे थे । उन्ही बच्चो में सोनू और जय भी शामिल थे । सोनू के पास टॉफ़ी का एक पैकेट था और जय के पास सूबसूरत रंग-बिरंगे पत्थर थे । जय अपने पत्थरों से खेल रहा था ।
तभी सोनू की नजर जय के पत्थरों पर गयी । सोनू को भी उन सूबसूरत पत्थरों से खेलने का मन हो गया । वो तुरंत जय के पास जाती है और उसे कहती है , जय क्या तुम मुझे ये सारे पत्थर दे सकते हो ? में तुम्हे इन सारे पत्थरों के बदले में टॉफ़ी का ये पैकेट दे दूंगी ।
सोनू के हाथ में टॉफ़ी का पैकेट देखकर जय के मुंह में पानी आ गया । जय ने सोचा की इन पत्थरों से तो मैं कई दिनो से खेल रहा हूँ , क्यों ना इन्हे देकर टॉफियाँ ले लूँ ।
जय ने सोनू से कहा अच्छा ठीक है में अभी तुम्हे अपने पत्थर दे देता हूँ , ऐसा बोलकर वो दूसरी तरफ घूम कर पत्थर उठाने लगा । अपने पसंदीदा पत्थरों को देखकर उसके मन में लालच आ गया और उसने कुछ पत्थर अपनी जेब में ही छुपा लिए और बाकि के पत्थर सोनू को दे दिए ।
सोनू ने तुरंत टॉफ़ी का पैकेट जय को दे दिया । अब सोनू उन रंग-बिरंगे पत्थरो से खेलने लगती है । खेलते खेलते अब शाम ढल गयी और सभी बच्चे अपने-अपने घरों में वापिस लौट जाते है ।
रात को सोते समय जय को मन में ख़याल आता है की आज मेने पत्थरों के लालच में सोनू के साथ चीटिंग की है । उसे ऐसा लगता है की उसने आज अच्छा नहीं किया । वो अब खुद को समझाने लगता है की क्या पता जिस तरह मेने कुछ पत्थर छुपा लिए थे उसी तरह सोनू ने भी कुछ टॉफियाँ छिपा ली हो ।
वो ये सब सोच कर बहुत परेशान हो रहा था और उसे पूरी रात नींद भी नहीं आयी । दूसरी तरफ सोनू पत्थरों से खेलते खेलते कब गहरी नीद में सो जाती है उसे पता भी नहीं चलता है ।
अगली सुबह जय ने ये तय किया की में सोनू के घर जाकर मेने जो पत्थर छिपाये थे उसे लौटा दूंगा । वो सोनू के घर जाता है और दरवाजा खटखटाता है । सोनू दरवाजा खोलती है तो सामने जय खड़ा होता है ।
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जय अपनी जेब में से पत्थर निकालता है और सोनू से कहता है की ये लो सोनू इन्हे भी रख लो । पत्थर देकर जय अपने घर की ओर भागता है ।
उस रात जय को अच्छे से नीद आ गई ।
जब भी हम कुछ गलत करते है या फिर गलत करने के बारे में सोचते है तब हमारे अंदर की आवाज हमें ऐसा करने से रोकती है । ये हम पर निर्भर करता है की हम अपने अंदर की आवाज को सुनते है या फिर नज़रअंदाज कर देते है ।
गलती किसी से भी हो सकती है लेकिन सही समय पर उस गलती को सुधारना भी बहुत अच्छी बात होती है । जय ने इस कहानी में अपनी गलती सुधारने की हिम्मत की और वो ऐसा कर भी पाया । हमें भी इसी तरह अपने अंदर की आवाज सुननी चाहिए और Guilt Free Life जीनी चाहिए ।
Moral : हमें अपनी गलती सही वक्त पर सुधार लेनी चाहिए ।
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