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एक चुप सौ सुख – Short Inspiring Story In Hindi

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Written by Abhishri vithalani

एक चुप सौ सुख – Short Inspiring Story In Hindi

ईश्वर ने हर इंसान को दो आँखे, दो कान, दो नासिका, हर इंद्रिया दो-दो दी है। पर जीभ एक ही दी, इसका क्या कारण रहा होंगे? इस कहानी ( एक चुप सौ सुख – Short Inspiring Story In Hindi ) में आपको इसका जवाब मिल जायेगा।

एक मछलीमार कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा हुआ था। काफी समय हो गया पर फिर भी उसके कांटे में कोई मछली नहीं फंसी और न ही कोई हलचल हुई। वह सोचने लगा कही ऐसा तो नहीं की मैंने कांटा गलत जगह डाला है, जहा कोई मछली ही न हो।

उसने तालाब में झाँका तो देखा की उसके कांटे के आसपास तो बहुत सी मछलिया थी। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलिया होने के बाद भी कोई मछली फंसी क्यों नहीं?

एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा तो उसने मछलीमार से कहा – लगता है भैया, आप यहाँ पर मछली पकडने के लिए बहुत दिनों बाद आए है । भैया क्या आपको नहीं पता कि अब इस तालाब कि मछलिया कांटे में नहीं फंसती।

मछलीमार ने बड़ी हैरानी के साथ पूछा – क्यों, ऐसा क्या है इस तालाब में? राहगीर ने जवाब दिया – कुछ दिन पहले ही इस तालाब के किनारे एक संत ठहरे थे। उन्होंने यहाँ मौन कि महत्ता पर प्रवचन दिया था। उनकी वाणी इतनी प्रभावशाली थी कि जब वे प्रवचन देते थे तब इस तालाब कि सारी मछलिया भी बड़े ध्यान से सुनती थी।

उस राहगीर ने आगे कहा – ये उनके प्रवचन का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन्हे फंसाने के लिए कांटा डालकर बैठता है तो ये मौन धारण कर लेती है। जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो कांटे में फंसेगी कैसे? इसलिए बेहतर यही होगा कि आप किसी ओर जगह पर जाकर कांटा डालो।

ईश्वर ने हर इंसान को दो आँखे, दो कान, दो नासिका, हर इंद्रिया दो – दो दी है। पर जीभ एक ही दी, इसका क्या कारण रहा होंगे? क्योकि यह एक ही अनेको भयंकर परिस्थितियां पैदा करने के लिए प्रयाप्त है।

संत ने कितनी सही बात कही कि जब खोलोगे ही नहीं तो फंसोगे कैसे? अगर इंद्रिया पर संयम करना चाहते हो तो इस जीभ पर नियंत्रण कर लो। बाकि सब इंद्रिया स्वयं नियंत्रित रहेगी। ये बात हमें भी अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए।

कई बार व्यक्ति के अनुचित या व्यर्थ बोल से बनते काम भी बिगड़ जाते है। जीवनभर के लिए रिश्तो में कड़वाहट पैदा हो जाती है। उसका समाज में यश गिर जाता है। वर्तमान में देखे तो बहुत सी समस्याए का कारण ज्यादा बोलना या अनुचित बोलना ही है।

ईश्वर कहते है कि कम बोलो, धीरे बोलो ओर मीठा बोलो। हमारी मीठी वाणी से बिगड़ते काम भी बन जाते है। लोगो कि दुआओ के पात्र बन जाते है। वाणी से हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है।

जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व जितना गंभीर, गुणों से भरपूर होता है उसकी वाणी में उतनी ही विनम्रता होती है। विनम्रता पूर्वक व्यवहार हमारे चरित्र को ऊँचा बनाता है। समाज में सम्मान दिलाता है। कई बार न बोलना भी उचित होता है।

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Abhishri vithalani

I am a Hindi Blogger. I like to write stories in Hindi. I hope you will learn something by reading my blog, and your attitude toward living will also change.

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